हाइकु चरम क्षण के अनुभूति की सटीक अभिव्यक्ति है : प्रो. कौशल

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-सत्येंद्र छिब्बर की 70 वर्ष की उम्र में पहली साहित्यिक कृति

उदित भास्कर डॉट कॉम. जोधपुर

सृजना के तत्वावधान में डॉ मदन सावित्री डागा साहित्य भवन में आयोजित हुए सत्येन्द्र छिब्बर लिखित हाइकु कृति "आठवा रंग" के लोकार्पण समारोह में बोलते हुए कार्यक्रम के अध्यक्ष कवि, आलोचक, संपादक डॉ रमाकांत शर्मा ने कहा कि इस कृति के माध्यम से रचनाकार सृजन के आठवें रंग की तलाश करता है । यही तलाश लेखक की सृजन धर्मिता होती है । उन्होंने कहा कि हाइकु लेखन वस्तुतः चम्मच में समुद्र समाने के समान है । आज "हाइकु दर्पण" पत्रिका देश की लोकप्रिय पत्रिकाओं में से एक है । हाल ही में हाइकु के विश्व कोश का निर्माण कविता की इस विधा के महत्त्व को रेखांकित करता है । 70 वर्ष की उम्र में पहली साहित्यिक कृति का प्रकाशन कवि की प्रबल रचनाधर्मिता का प्रमाण है ।

आयोजन में स्वागत सम्मान के बाद मंचस्थ अतिथियों ने "आठवा रंग" का लोकार्पण किया । इसके पश्चात रचनाकार सत्येन्द्र छिब्बर ने अपना वक्तव्य देते हुए कहा कि 70 वर्ष की उम्र में पहली साहित्यिक पुस्तक का प्रकाशन अपने आप में बहुत रोमांचक होता है । पढ़ना ही मेरा शौक रहा है । इस बीच समृद्ध अनुभूति ने न जाने कब अभिव्यक्ति की आकांक्षा पाल ली । इस अवसर पर उन्होंने अपने कुछ हाइकु भी प्रस्तुत किए ।

समारोह की मुख्य अतिथि , कवयित्री, समीक्षक प्रो कैलाश कौशल ने अपने उद्बोधन में कहा कि जापान से आरम्भ कविता की यह शैली प्रारम्भ में केवल प्रकृति की अभिव्यक्ति तक ही सीमित थी । आज यह जीवन के सभी रंगों से सम्बद्ध है । जोधपुर में जापानी भाषा के विशेषज्ञ सत्यभूषण वर्मा ने इस विधा पर बहुत कार्य किया था । उन्होंने कालांतर में एक हाइकु क्लब की स्थापना की थी । हाइकु केवल 5-7-5 वर्णों का लेखन मात्र नहीं है , ये वर्ण जब तक गम्भीर अर्थवतत्ता से सम्पुष्ट नहीं होते तब तक हाइकु कविता नहीं बनती है । हाइकु का विस्तार ही हाइकु की गुणवत्ता होती है । कवि छिब्बर ने इस दृष्टि से बहुत सफल हाइकु लिखे हैं ।

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि कवयित्री , गद्यकार, पत्रकार डॉ पद्मजा शर्मा ने कहा कि हाइकु का प्रारंभ भले ही प्रकृति-अभिव्यक्ति से हुआ हो पर अपने दम पर यह विधा जीवन के सभी आयामों की सशक्त अभियक्ति का माध्यम बन गई है । आज यह अपने दायरे से बाहर निकल कर जीवन की सूक्ष्म अनुभूतियों की अभिव्यक्ति का सटीक आधार बन गई है जिसने हाथों में मोबाइल लिये बच्चों के कारण सूने पड़े खेल मैदानों, घर से विस्थापित बुज़ुर्गों के दर्द की अभिव्यक्ति की है । इस परिस्थितियों के लिए बेशक कहीं न कहीं समाज भी दोषी है । कवि सत्येन्द्र छिब्बर के हाइकु केवल समाज के दोषों की ओर ही संकेत नहीं करते अपितु समाज को उदात्त बनने के लिए भी प्रेरित करते हैं । वे करने योग्य तथा न करने योग्य कर्मों की ओर भी स्पष्ट संकेत करते हैं । छिब्बर के अनेक हाइकु में हिंदी में स्वीकृत हो चुके अनेक अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग भी बहुत स्वाभाविक रूप में हुआ है ।

आगन्तुकों का स्वागत सृजना अध्यक्ष सुषमा चौहान ने किया । आयोजन का सफल संचालन कवयित्री मधुर परिहार ने तथा धन्यवाद ज्ञापन सृजना सचिव डॉ हरीदास व्यास ने किया ।

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