- सिकंदर ने पूरी दुनिया लगभग जीत ली थी, मगर धैर्य नहीं रख पाया और आखिर 33 वर्ष की उम्र में बेबीलोन में उसकी मौत हो गई, कहते हैं उसकी मौत बुखार से हुई थी, लेकिन यह सत्य नहीं है, उसकी मौत सांप काटने से हुई थी। सिकंदर ने एक बार अपने गुरु अरस्तु को डराने के लिए सोते हुए उनके ऊपर मरा हुआ सांप डाल दिया था, तब अरस्तु की आंख खुल गई और उन्होंने गुस्से में आकर कहा-मूर्ख जिस ताकत पर तुझे इतना नाज है, धैर्य नहीं होने से तू अपने मकसद में कामयाब नहीं होगा और सांप ही तेरी मौत का कारण बनेगा…
अरस्तु के श्राप की वजह से हुई थी सिकंदर की मौत!





राखी पुरोहित. जोधपुर
सिकंदर की मौत कैसे हुई थी?
इस पर हुई रिसर्च में पता चलता है कि उसकी मौत सांप के काटने से हुई थी। अरस्तु
सिकंदर के गुरु थे और शिक्षा काल के दौरान एक बार सिकंदर ने अपने गुरु अरस्तु पर
सोते हुए मरा हुआ सांप डाल दिया था, बताया जाता है कि अरस्तु ने सिकंदर को गुस्से
में आकर कहा-मूर्ख तुझमें धैर्य नहीं है और तुमने गुरु को डराने का प्रयास किया
है। सांप ही तेरी मौत का कारण बनेगा और धैर्यहीन होने से तुम अपने लक्ष्य में सफल
नहीं हो पाओगे। बताया जाता है कि 33 साल की उम्र में बेबीलोन में उसकी मौत हो गई।
इतिहास में बताया जाता है कि उसकी मौत बुखार यानी टाइफाइड से हुई थी, मगर सच तो यह
है कि उसकी मौत सांप के काटने से हुई थी।
यह नया रहस्योद्घाटन यहां एक
लाइब्रेरी में मिली पांडुलिपि के हवाले से एक वैद्य ने वर्षों पहले ही कर दिया था।
इस पांडुलिपि की भाषा पढ़ने में नहीं आ रही थी, लेकिन अलीगढ़ के एक वैद्य जेठमल
व्यास के प्राचीन हस्तलिखित पन्ने पर इतना लिखा हुआ मिलता है कि सिकंदर की मौत
सांप काटने से हुई। पन्ने पर लिखा है कि गुरु पे मरो सांप लैटायो, गुरु
बोल्यो-सर्प राजा ने खायो, सिकंदर प्राण गंवायो…गौरतलब है कि वेद्य जेठमल व्यास ने 21 साल की उम्र में अल
हिल्लह का दौरा किया था। वहां किसी लाइब्रेरी में उन्हें अरस्तु को पढ़ने का मौका
मिला और उन्हें जो शोधपरक जानकारी मिली उन्होंने किसी पन्ने पर इसे लिख दिया।
जेठमल व्यास खुद वैद्य होने के साथ ही घुम्मकड़ थे। उन्हें हिंदी, अंग्रेजी,
संस्कृत, फारसी, गुजराती, बंगाली, उर्दू और कई तरह की भाषाएं आती थीं। जिस लिपी
में सिकंदर की मौत के बारे में लिखा गया है वह बेबीयाई लिपि है। इस लिपि को दुनिया
में कम लोग ही जानते हैं। इसी बेबीयाई लिपि में व्यास ने ब्रह्मांड की रचना और
कालखंड को उजागर किया था, मगर ये पांडुलिपियां उनके परिजनों ने रद्दी समझकर बेच
दी।
सिकंदर ने दुनिया जीती, मगर मौत ने आकर नर्तन किया
सिकंदर का जन्म 356 ईसा
पूर्व यूनान के मैसेडोन या मकदूनिया के पेला नामक स्थान पर हुआ था। इनके पिता
फिलिप द्वितीय मकदूनिया और ओलंपिया के राजा थे। उनकी माता ओलंपिया जो एपिरुस की
राजकुमारी थी। ऐसा माना जाता है कि उनकी माता एक जादूगरनी थी, जिनको सापों के बीच
रहने का शौक था। इसी वजह से सिकंदर भी सांपों से खेला करता था। इसी खेल-खेल में
सिकंदर ने गुरु के गले में सांप डाल दिया। उसकी एक बहन थी, जिसका नाम क्लियोपैट्रा
था। सिकंदर और उसकी बहन की परवरिश पेला के ही शाही दरबार में हुई थी। सिकंदर
बुद्धिमान थे, उन्होंने 12 वर्ष की आयु में ही घुड़सवारी सीख ली। सिकंदर की
प्रारंभिक शिक्षा इनके एक रिश्तेदार द स्टर्न लियोनिडास से हुई। उनके पिता फिलिप
चाहते थे कि वे पढ़ाई के साथ -साथ युद्ध विद्या का भी ज्ञान प्राप्त करें और एक
महान योद्धा बनें। इसलिए बचपन से ही इनको युद्ध विद्या जैसे तलवारबाजी,
धनुर्विद्या, घुड़सवारी आदि की शिक्षा भी द स्टर्न लियोनिडास से ही प्राप्त की।
इसके पश्चात इनके पिता इनके आगे की शिक्षा के लिए एक महान दार्शनिक और विचारक
अरस्तु को नियुक्त किया गया। उस वक़्त इनकी उम्र 13 साल थी। अरस्तु के निर्देशन
में ही सिकंदर ने साहित्य, विज्ञान, दर्शनशास्त्र जैसे विषयों का अध्ययन किया।
सिकंदर की उम्र जब 20 वर्ष की थी, तब उनके पिता की मृत्यु हो गई। पिता के निधन के
बाद 336 ईसा पूर्व में सिकंदर ने मेसेडोनिया या का सम्राट बनने के लिए अपने सौतले
और चचेरे भाइयों की हत्या करवा दी। इसमें सिकंदर की मां ओलंपिया ने सिकंदर की मदद
की। सम्राट बनने के बाद सिकंदर ने अपने पिता की इच्छा को पूरा करने के लिए एक
विशाल सेना का गठन किया और अपने साम्राज्य को बढ़ाने के लिए सिकंदर ने यूनान के कई
भागों पर अधिकार कर अपनी जीत दर्ज की। इसके पश्चात सिकंदर एशिया माइनर को जीतने के
लिए निकल पड़ा। इस युद्ध में सिकंदर ने सीरिया को पराजित कर मिस्र, ईरान,
मेसोपोटामिया, फिनिशिया जुदेआ, गाजा और बक्ट्रिया प्रदेश को भी पराजित कर अपने
कब्जे में ले लिया। उस समय सभी राज्य फारसी साम्राज्य का हिस्सा हुआ करता था जो
सिकंदर के साम्राज्य का लगभग 40 गुना था। इसी दौरान सिकंदर ने 327 ईसा पूर्व में
मिस्र में एक नए शहर की स्थापना की। जिसका नाम अपने नाम पर इलेक्जेंड्रिया रखा और
यहां एक विश्वविद्यालय भी बनवाया। सिकंदर ने अपनी विशाल सेना और कुशल नेतृत्व से
फारस के राजा डेरियस तृतीय को अरबेला के युद्ध में हराकर स्वयं वहां का राजा बन
गया। फारस की राजकुमारी रुकसाना से विवाह कर सिकंदर ने जनता को भी अपनी ओर कर
लिया। इसके अलावा सिकंदर ने कई जगहों पर अपनी जीत हासिल की। सिकंदर ने भारत पर 326
ईसा पूर्व आक्रमण किया। उस समय भारत छोटे-छोटे गणराज्यों में बंटा हुआ था। सिकंदर
खैबर दर्रे से होकर भारत पहुंचा और उसने पहला आक्रमण तक्षशिला के राजा अंभी पर
किया। अंभी ने कुछ समय बाद सिकंदर के सामने आत्मसमर्पण कर दिया। इस समय तक्षशिला
में आचार्य चाणक्य एक शिक्षक के रूप में सेवाएं दे रहे थे। उनसे ये विदेशी हमले
देखे नहीं गए और सिकंदर से लड़ने के लिए बहुत से राजाओं के पास गए, लेकिन आपसी
मतभेद के कारण कोई भी सिकंदर के खिलाफ लड़ने के लिए तैयार नहीं हुआ। उस समय भारत
में मगध में राजा घनानंद का राज था। वह बहुत ही शक्तिशाली था। चाणक्य घनानंद के
पास भी गया, लेकिन घनानंद ने चाणक्य का अपमान कर उसे महल से निकाल दिया। जिसका
परिणाम आगे चलकर घनानंद को उठाना पड़ा। तक्षशिला के राजा अंभी को हराकर सिकंदर झेलम
और चिनाब नदी की ओर बढ़ा और नदी के किनारे ही सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध लड़ा गया।
इस युद्ध में पोरस की हार हुई। झेलम नदी के किनारे सिकंदर और पौरस के बीच भयानक
युद्ध की शुरुआत हुई। पहले दिन पौरस ने सिकंदर का डटकर सामना किया, लेकिन मौसम खराब
होने के कारण पौरस की सेना कमजोर पड़ने लगी। ये देखकर सिकंदर ने पौरस से आत्मसमर्पण
करने के लिए कहा, लेकिन पौरस ने हार नहीं मानी और युद्ध करते रहे। पौरस जानते थे
कि उनकी हार निश्चित है, लेकिन उन्हें किसी की अधीनता स्वीकार नहीं थी। सिकंदर ने
पौरस को पराजित तो कर दिया, लेकिन उसका भी बड़ा नुकसान हुआ। सिकंदर ने पौरस के साथ
मित्रता कर ली और उससे जीता राज्य वापस कर दिया और सेना के साथ वापस लौटने का
फैसला किया। लौटते वक्त बेबीलोन में सिकंदर की सांप के काटने से मौत हो गई।