-वनों की अंधाधुंध कटाई से नजर नहीं आते पारंपरिक पौधे, गुग्गुल तो तस्करी की वजह से लगभग खत्म ही हो चुका, गुंभटिया गोंद अति दोहन से सिमट गया, सोनामुखी, गिलोय, पीलू, बबूल, चिरोंजी, तुंबा सहित अनेक पौधे बीते कल की बात बने
तस्करी की वजह से मरुस्थल से लुप्त हो रहे औषधीय पौधे




मुकेश कुमार पुरोहित. जैसलमेर
फरवरी के महीने में ही गर्मी में लगातार बढ़ोतरी... यह सब जंगल नष्ट होने के कारण हो रहा है। वनों में जीव व वनस्पतियों की प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं या विलुप्त होने के कगार पर हैं। मरुस्थल में दर्जनों औषधीय पौधे और वनस्पतियां लुप्त हो चुकी हैं। यही नहीं कई औषधी पौधे तो तस्करी की वजह से बीते कल की बात बन चुके हैं। औषधीय पौधे प्रजातियां अति संकटग्रस्त स्थिति में पहुंच गई हैं। वन्यजीव पलायन कर रहे हैं। लगातार विविधता के साथ पौधरोपण, संवर्धन से ही इस संकट से निबटा जा सकता है।
आइए जानते हैं किस औषधीय पौधे का क्या हाल हुआ
महत्व : इससे कई गंभीर और जटिल बीमारियों का इलाज किया जाता है। आयुर्वेद में इसे रस कहा जाता है। गुग्गुल से सेक्स संबंधी रोगों का आसानी से इलाज हो जाता है। गुग्गुल से धूप और अगरबत्ती बनती है जो पूजा के लिए काम आते हैं। इससे लोगों को आय भी होती थी। कभी गुग्गुल अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार था।
2.गिलोय : यह बेल होती है। यह नीम के पेड़ पर चढ़ती है। मरुस्थल में अब गिलोय कम ही देखी जाती है। कभी गिलोय की बेल मरुस्थल में बहुतायत में मिल जाती थी। खासकर जहां नीम के पेड़ होते थे उस पर गिलोय चढ़ा दी जाती थी। लेकिन अब गिलोय की बेल कम ही दिखाई देती है। गिलोय का भी अंधाधुंध दोहन हुआ और इसकी तस्करी की वजह से इसकी तादाद घटती गई।
महत्व : आयुर्वेद में गिलोय से कई तरह की बीमारियों का इलाज होता है। खासकर बुखार में गिलोय रामबाण मानी गई है। गिलोय से दर्जनाें बीमारियों का इलाज होता है। सुजोख में भी गिलोय से इलाज किया जाता है। लेकिन गिलोय की तादाद घटने से मरुस्थल के लोगों को इसका नुकसान उठाना पड़ रहा है। पहले देशभर में गिलोय की सप्लाई की जाती थी, मगर अब हालात बदल चुके हैं।
3. तुंबा : तुंबा बारिश के बाद मरुस्थल में चारों तरफ पसर जाता था। यह गोल-गोल और पीले रंग का होता है। कभी मरुस्थल बारिश के बाद तुंबों से अट जाता था। मगर अब तुंबा सिमट गया है। तुंबे को पशुओं को भी आहार के रूप में खिलाया जाता था। वनों की तादाद घटन के साथ ही तुंबे की तादाद भी घटती गई।
महत्व : तुंबे से आयुर्वेद की कई औषधियां बनती है। विषधर काटते हैं तो तुंबे से इसका इलाज किया जाता है। साथ ही बुखार को उतारने में तुंबा कारगर औषधी मानी गई है। सेक्स संबंधी रोगों में भी तुंबे का उपयोग किया जाता है। काजरी के वैज्ञानिकों ने तुंबे का महत्व समझा है और अब तुंबे के पैठे बनाए जा रहे हैं।
4.पीलू : कभी मरुस्थल में पीलू के पेड़ बहुतायत में दिखाई देते थे। मगर अब आसानी से इसके पेड़ दिखाई नहीं देते। पीलू को महिलाएं और बच्चे तोड़ते नजर आते थे। यह मरुस्थल का मीठा फल माना गया है। छोटे-छोटे पीलू से शरबत भी बनाया जाता था। मगर जंगल कटे तो पीलू के पेड़ भी सिमटते गए। अब तो आसानी से पीलू के पेड़-पौधे नजर नहीं आते।
महत्व : पीलू से कई बीमारियों का इलाज होता है। ताकत के लिए भी पीलू का उपयोग किया जाता है। यही नहीं पीलू का शरबत भी काजरी ने तैयार किया है। पीलू के बीज भी औषधीय रूप में उपयोग में लिए जाते हैं।
5. सोनामुखी : सोनामुखी भी औषधीय पौधा है। मरुस्थल में अब यह आसानी से दिखाई नहीं देता। कभी जंगल हरे थे तो सोनामुखी दिख जाती थी। मगर अब सोनामुखी के पौधे आसानी से दिखाई नहीं देते। सोनामुखी आयुर्वेद का महत्वपूर्ण औषधीय पौधा कहलाता है।
महत्व : सेक्स पॉवर बढ़ाने और इम्यूनिटी पॉवर बढ़ाने के लिए सोनामुखी महत्वपूर्ण औषधीय है। लेकिन अब यह बीते जमाने की बात हो गई है। इसके पौधे आसानी से नजर नहीं आते। काजरी द्वारा अपनी वाटिकाओं में सोनामुखी उगाया जा रहा है, मगर अभी खेतों और किसानों के पास इसका उत्पादन बढ़ाने का प्रयास नहीं हो रहा।
6 बबूल : बबूल तो मरुस्थल की शान रहा है। कदम कदम पर बबूल मिल जाते थे। अब भी बबूल के कई पेड़ हैं, मगर अब उसकी संख्या उतनी नहीं रही। इसका कारण इसकी लकड़ी का कीमती होना है। जंगल माफिया बबूल काटकर ले गए और इसकी लकड़ी बेच दी। माफियाओं ने जंगल के जंगल काट दिए और इसकी लकड़ी की देशभर में तस्करी की। बबूल के पेड़ की लकड़ी के फर्नीचर बनते हैं। इसलिए इसकी तस्करी बहुतायत पर हुई।
महत्व : बबूल की लकड़ी का कीमती फर्नीचर बनता है। इस फर्नीचर की देश-विदेशों में बड़ी मांग रहती है। वर्षों से इसकी तस्करी होती रही। माफिया तो बबूल के बबूल काट ले गए। जंगल के जंगल साफ हो गए। बबूल के पेड़ की पत्तियों और फलियों से आयुर्वेद में कई औषधियां भी बनती है।
7. कुंभटिया गाेंद : यह विभिन्न पेड़ों पर नजर आता था। खासकर पेड़ों पर गुंभटिया गोंद देखकर इसका अत्यंत दोहन होता गया। तस्करों ने इस गोंद को निकालकर विदेशों तक में सप्लाई किया। पेड़ों पर इंजेक्शन लगाकर इसका अति दोहन किया गया। इससे अब मरुस्थल में गुंभटिया गोंद नजर नहीं आता।
महत्व : आयुर्वेद में कुंभटिया गोंद खासा महत्व रखता है। महिलाओं को जापे में यानी प्रसव के बाद गुंभटिया गोंद के पकवान खिलाए जाते हैं। ताकत के लिए और इम्युनिटी पॉवर बढ़ाने में भी इसका महत्व है। काजरी इसको संवारने में लगा है।
प्रदूषण बड़ा खतरा
औद्यौगिकीकरण के विकास की हाेड़ में विनाश की तरफ बढ़ रहे हैं। लाउडस्पीकर बजाने
से ध्वनि प्रदूषण हो रहा है। जलाशयों को गंदा किया जा रहा है। मानवीय दबाव बढ़ रहा
है। जंगल और वन्यजीवों पर असर पड़ रहा है। इसका असर जलवायु परिवर्तन पर पड़ रहा है।
सामुदायिक भागीदारी जरूरी
घरेलू, आवासीय स्कूलों में गैस कनेक्शन हाेने से जंगल के कटान पर रोक लगी है।
आमजन में जंगल और जैव विविधता के महत्व को लेकर जागरुकता लानी होगी। जंगल की
सुरक्षा और जैव विविधता को बचाने के लिए सतर्क रहना होगा। सामुदायिक भागीदारी से
यह व्यापक रूप ले सकता है। लोगों ने औषधीय पौधों की लाइफ लाइन को ही नष्ट कर दिया।
हर साल अभियान चलाना
होगा। जंगल के प्लांटेशन में इन पौधों को लगाकर उनकी सुरक्षा और संरक्षण को
सुनिश्चित करना होगा। राजस्थान मेडिसिन विभाग, उद्यानिकी और वन विभाग सहित महात्मा
गांधी नरेगा योजना व अन्य मद से इस पर प्रभावी काम करना होगा। ग्राम पंचायतों के
चरागाह में इस प्रकार के पौधरोपण किए जा सकते हैं। इससे 4-5 साल की अवधि में फिर
से विविधता पूर्ण जंगल विकसित किए जा सकते हैं।